hindisamay head


अ+ अ-

कविता

कभी पाबंदियों से छुट के भी दम घुटने लगता है

फ़िराक़ गोरखपुरी


कभी पाबन्दियों से छुट के भी दम घुटने लगता है
दरो-दीवार हो जिसमें वही ज़िन्दाँ नहीं होता

हमारा ये तजुर्बा है कि ख़ुश होना मोहब्बत में
कभी मुश्किल नहीं होता, कभी आसाँ नहीं होता

बज़ा है ज़ब्त भी लेकिन मोहब्बत में कभी रो ले
दबाने के लिये हर दर्द ऐ नादाँ ! नहीं होता

यकीं लायें तो क्या लायें, जो शक लायें तो क्या लायें
कि बातों में तेरी सच झूठ का इम्काँ नहीं होता


End Text   End Text    End Text